Tribal Issues: आज के द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा नहीं मांगते पूरा हाथ ही काट लेते हैं: मनोज झा

Tribal Issues: आज के द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा नहीं मांगते पूरा हाथ ही काट लेते हैं: मनोज झा

नई दिल्ली। Tribal Issues: “कितना मुश्किल होता है बहुजन समाज के बच्चों का उच्च शिक्षा तक पहुंचना, आगे बढ़ना!!
हर मोड़ पर ना दिखने वाले अवरोधक लगा दिए गए हैं!
आज के द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा ही नहीं माँग रहे हैं, पूरा हाथ ही काट लेते हैं! मस्तिष्क को हाईजैक कर लेते हैं!”

यह बातें आज राज्यसभा में बिहार से आरजेडी सांसद मनोज झा ने आदिवासी मंत्रालय की अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान कहीं। एकलव्य मॉडल स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर उन्होंने कई गंभीर सवाल उठाए।  उन्होंने कहा कि इन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता चिंता का विषय होना चाहिए, लेकिन अफ़सोस कि बात है कि एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि बिहार और जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में सरकार ने आदिवासियों के लिए आवासीय स्कूल के लिए कोई पैसा आवंटित नहीं किया है।

Manoj Jha, Member of parliament (rajya sabha) (photo search Google)

उन्होंने साथ ही यह बात भी कही कि एकलव्य मॉडल स्कूल के नाम पर एक बार फिर चर्चा की जानी चाहिए, क्योंकि आज की व्यवस्था में हम एकलव्य को उस स्थिति में पहुंचा रहे हैं जहां उसकी क्षमता, उसकी श्रम शक्ति और योग्यताओं के आधार पर इसे रोजगार के अवसर देने वाला कोई नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने देश भर में आदिवासियों की शिक्षा और साक्षरता के स्तर पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि आज भी आदि आदिवासी आबादी अपना नाम तक लिखना नहीं जानती।

मनोज झा ने कहा कि देश के आदिवासियों पर संसद में शायद ही कभी चर्चा भी होती है। उन्होंने कहा कि आदिवासी इलाक़ों में दख़लंदाज़ी की बजाए उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था। उन्होंने कहा कि आज भी आदिवासी आबादी में 40 प्रतिशत से अधिक आबादी निरक्षर है, यानि आदिवासी आबादी का लगभग आधा हिस्सा ऐसा है जो अपना नाम तक लिखना नहीं जानता है, लेकिन संसद में इस पर कभी चर्चा नहीं होती।

इसके अलावा 12 साल से 18 साल के बीच की उम्र के आदिवासी युवक युवतियों में से 6.8 प्रतिशत भी 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी इलाक़ों में दख़लंदाज़ी की बजाए उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इस नीति के उल्टा काम हुआ है। आदिवासी इलाक़ों में विकास के नाम पर दख़ल अंदाज़ी ज़्यादा हुई है। उन्होंने संसद में आदिवासी मसलों पर बोलते हुए कहा कि आदिवासी इलाक़ों में कुपोषण, ज़बरदस्ती शहरीकरण की कोशिश और बीमारी ये तिहरी मार लोग झेल रहे हैं।

चर्चा के दौरान उन्होंने आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा का ध्यान कई महत्वपूर्ण विषयों की तरफ़ खींचने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा तक पहुंचना वंचित तबकों के लिए बेहद मुश्किल काम है।विशेषकर आदिवासी आबादी का उच्च शिक्षा में प्रतिनिधित्व ना के बराबर मिलता है। उन्होंने कहा कि सरकार को आदिवासी छात्रों के उच्च शिक्षा तक पहुंचने   मे आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। आदिवासी इलाक़ों में नक्सलवाद को सिर्फ़ लॉ एंड ऑर्डर की समस्या के तौर पर देखना भूल होगी। क्योंकि यह सिर्फ़ क़ानून व्यवस्था का मसला नहीं है बल्कि यह सामाजिक मामला भी है।

उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार से सवाल पूछा कि 2018 के बाद आदिवासी मसलों से जुड़ी कमीशन की रिपोर्ट पेश क्यों नहीं की गई। सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यह बताता है कि सरकार पारदर्शिता में कितना यक़ीन रखती है।

केन्द्र सरकार के 2022-23 के बजट में कुल 8451 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। पिछले साल की तुलना में यह क़रीब 12 प्रतिशत ज़्यादा है। साल 2021-22 के लिए आदिवासी मंत्रालय को 7524 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। हालांकि बाद में इस काट कर कुल 6181 करोड़ रुपए कर दिया गया था।

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