The Good Maharaja: भारत के एक ऐसे राजा की कहानी जिन्होंने पोलैंड के हजारों बच्चों को आश्रय देकर उन्हें दिया था नवजीवन

The Good Maharaja: भारत के एक ऐसे राजा की कहानी जिन्होंने पोलैंड के हजारों बच्चों को आश्रय देकर उन्हें दिया था नवजीवन

हिमांशु शर्मा। The Good Maharaja: यूरोप में साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से साल 1939 के अंत से 1941 की शुरुआत तक जर्मनी ने एक बड़ा अभियान चलाते हुए अधिकांश देशों पर कब्जा कर लिया था। पोलैंड उन देशों में एक था जिस पर शुरुआती दौर में ही जर्मनी पूरी तरह काबिज हो गया था।

यही था दूसरा विश्वयुद्ध जिसने पोलैंड को पूरी तरह से तबाह कर दिया और उसका अस्तित्व ही लगभग खत्म कर दिया था। पोलैंड पर हमले के बाद वहां भीषण तबाही हुई थी जैसे कि आज यूक्रेन में नजर आती है। उस दौरान भी लाखों लोगों की जानें गई थीं और ऐसे ही लाखों लोग निर्वासित हुए थे। पोलैंड में उस वक्त बड़ी संख्या में मासूम बच्चे ही रह गए थे। इन्हें उस युद्ध की विभीषिका से सुरक्षित बाहर निकाल कर उनकी आगे की जिंदगी को संवारना व उनके बिछड़े माता-पिता से मिलाना जरूरी था, तभी पोलैंड के भविष्य में पुनर्जीवन की उम्मीद जिंदा रह सकती थी।

फोटो स्रोत- ‘लिटिल पोलैंड इन इंडिया’ फिल्म आर्काइव।

इसी दौरान भारत में एक ऐसे महान राजा हुए जिन्होंने इन हजारों बच्चों को नया जीवन देते हुए आज के पोलैंड को वापस आबाद होने में मदद की। ऐसी मदद जो सिर्फ एक पिता ही अपने बच्चों के लिए कर पाता है। जिन बच्चों के सर से माता- पिता का साया छिन गया था या युद्ध की विभीषिका में वह उनसे बिछड़ गए थे, इन बच्चों के लिए महाराज जाम दिग्विजय सिंह जाडेजा एक पालनहार के रूप में सामने आए। इस महान भारतीय राजा को आज भी पोलैंड के लोग पूरी श्रद्धा के साथ ही याद करते हैं और उन्हें अपने राष्ट्रीय सम्मान और पुनर्जीवन का प्रतीक मानते हैं।

जब कोई नहीं था साथ तब महाराजा ने थामा हाथ

बताया जाता है कि जर्मन हमले में यहां 5600000 लोगों की मौत हुई थी और उसके अलावा सोवियत रूस की सेना द्वारा किए गए हमले में करीब डेढ़ लाख लोग मारे गए थे। पोलेंड की महिलाओं ने पोलेंड छोड़ दिया क्योंकि वहां उनकी इज्जत को खतरा था। बड़ी संख्या में वहां बच्चे रह गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महाराजा जामनगर दिग्विजय सिंह ने पैसिफिक वॉर काउंसिल के साथ इंपीरियल वॉर कैबिनेट और नेशनल डिफेंस काउंसिल में काम किया। इस दौरान उन्हें इन बच्चों के विषय में जानकारी मिली। दुनिया के अधिकांश देश इन बच्चों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थे इसी बीच जाम साहब ने इन बच्चों की जिम्मेदारी लेना तय किया और इन्हें एक लंबी समुद्री यात्रा से होकर भारत तक जाम साहब की मदद से पहुंचाया गया।

ताकि उन बच्चों में बरकरार रहे राष्ट्रीयता की भावना

राजा जाम दिग्विजय सिंह जाडेजा ने जिन बच्चों को आश्रय दी थी वह उन्हें अपना दत्तक पुत्र और पुत्री मानते थे। 1942 में उन्होंने शरणार्थी पोलिश बच्चों के लिए जामनगर- बालाचडी में पोलिश बाल शिविर की स्थापना की। यह बच्चे पोलैंड की अपनी संस्कृति मातृभाषा और रहन-सहन से जुड़े रह सकें इसके लिए उन्होंने बेहद खास व्यवस्थाएं की थी। इन बच्चों के लिए स्थापित स्कूल और हॉस्टल। तमाम व सुविधाएं मौजूद थीं जो उस समय एक बेहतर उन्नत किस्म के स्कूल में हो सकती थी। उस दौर में यह दुनिया का एकमात्र ऐसा परिसर था जहां निर्बाध रूप से पोलैंड के झंडे का आरोहण होता और वहां पोलैंड का राष्ट्रगीत दैनिक रूप से गाया जाता था। जो सब इसलिए था ताकि उन बच्चों में अपने देश के प्रति राष्ट्रीयता की भावना लगातार बरकरार और प्रबल रहे। इन बच्चों को स्कूल में सैनिक ट्रेनिंग भी दी जाती थी। यह 1945 तक यह बाल शिविर अस्तित्व में था। शिविर स्थल आज सैनिक स्कूल, बालाचडी के 300 एकड़ के परिसर का हिस्सा है।

महाराजा को ईश्वर के समान मानते हैं पोलैंड के लोग

पोलैंड के लोग उन्हें गुड महाराजा के नाम से जानते हैं। उनके नाम पर यहां गुड महाराजा स्क्वायर भी है। लोग उन्हें अन्नदाता मानते हैं। उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजय सिंह उनके लिए ईश्वर के समान हैं, इसीलिए उनको साक्षी मानकर आज भी वहां के नेता संसद में शपथ लेते हैं। यदि भारत में दिग्विजय सिंह जी का अपमान किया जाए तो यहां की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नहीं भूला है इसलिए उसने भारत के साथ मजबूत रिश्ते कायम रखे हैं।

क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भी थे महाराजा


दिग्विजय सिंह रंजीत सिंह जडेजा 1933 से 1966 तक नवानगर के महाराजा जाम साहिब थे, जो अपने चाचा, प्रसिद्ध क्रिकेटर रंजीत सिंह के उत्तराधिकारी थे। अपने चाचा के निधन पर, दिग्विजय सिंह 1933 में अपने चाचा की विकास और सार्वजनिक सेवा की नीतियों को जारी रखते हुए महाराजा जाम साहिब बने। 1935 में वह चैंबर ऑफ प्रिंसेस में शामिल हुए। 1937 से 1943 तक अध्यक्ष के रूप में इसका नेतृत्व किया। अपने चाचा की क्रिकेट परंपरा को कायम रखते हुए, उन्होंने 1937-1938 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने इससे पहले 1933- 34 के दौरान भारतीय टीम की ओर से एक प्रथम श्रेणी मैच भी खेला था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महाराजा दिग्विजय सिंह ने पैसिफिक वॉर काउंसिल के साथ इंपीरियल वॉर कैबिनेट और नेशनल डिफेंस काउंसिल में काम किया।

विरासत के सम्मान में वारसॉ में स्थापित हुआ स्कूल

इस विरासत का सम्मान करने के लिए वारसॉ में जमसाहेब दिग्विजय सिंह जडेजा स्कूल की स्थापना की गई थी। 2016 में, जाम साहब की मृत्यु के 50 साल बाद, पोलैंड की संसद ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलिश बच्चों के शरणार्थियों की सहायता के लिए जाम साहब दिग्विजय सिंह को सम्मानित करने के लिए सर्वसम्मति से एक विशेष प्रस्ताव अपनाया। 

लिटिल पोलैंड इन इंडिया

“लिटिल पोलैंड इन इंडिया” नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म महाराजा जाम साहिब और किरा बनासिंस्का के प्रयासों का सम्मान करने के लिए भारतीय और पोलिश दोनों सरकारों के सहयोग से बनाई गई थी। भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने 15 अगस्त 1947 को भारत के डोमिनियन में प्रवेश के साधन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने अगले वर्ष नवानगर को संयुक्त राज्य काठियावाड़ में विलय कर दिया, जब तक कि भारत सरकार ने पद को समाप्त नहीं कर दिया, तब तक उन्होंने राजप्रमुख के रूप में सेवा की।

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