Story and Literature: Hari Shankar Paraai: व्यंगकार हरिशंकर परसाई और उनका रचना संसार

Story and Literature: Hari Shankar Paraai: व्यंगकार हरिशंकर परसाई और उनका रचना संसार

रायगढ़ (गणेश कछवाहा)। Hari Shankar Paraai: हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में इटारसी के पास जमानी गांव में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है और एक राष्ट्रीय चिंतन व विमर्श पैदा करती है।

परसाई जी व्यवस्था और जीवन की विसंगतियों पर बहुत गहराई से लेखन करते थे उसमें उनके जीवन का शाश्वत अनुभव का गहरा प्रभाव था। वे आर्थिक परेशानियों से आजीवन जूझते रहे। इस अभाव के अनुभव ने ही उन्हें एक संवेदनशील व्यंग्य रचनाकार के रूप में निखारा, उन्होंने कभी भी कोई अपवित्र समझौता नहीं किया और जीवन में संघर्ष करते हुए अपनी पारिवारिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी का पूर्ण निर्वहन किया।यही आचरण , जीवन तथा समाज को समझने की दृष्टि और साम्यवादी सोच ने उनके भीतर एक ऐसा दिव्य जीवन संस्कार गढ़ता गया, जो यथार्थ को पूरी निर्भीकता के साथ सामाजिक, राजनैतिक और सांसारिक पटल पर हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा के माध्यम से पूरी संवेदनाओं के साथ सशक्त तरीक़े से रखते चले गए। देश और समाज की दुरावस्था पर व्यंग्यात्मक चोट करने वाले परसाई ने खुद को भी नहीं बख्शा। परसाई जी का लेखन एक सशक्त आवाज़ और ताक़त बनकर उभरा थी। वह खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही जल्दी पकड़ लेते थे। परसाई ने उस समय के सामाजिक और राजनैतिक विफलताओं पर विवेकपूर्ण कटाक्ष किए।

राजनैतिक व्यवस्था, सामाजिक विसंगतियों, पाखंड और रूढ़िवादिता पर बड़े दृढ़ वैज्ञानिक सोच और वास्तविकता के साथ खुलकर कठोर प्रहार किया करते थे। उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापन महसूस होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।

जबलपुर में वसुधा नामक साहित्य पत्रिका शुरू की। इसकी अत्यधिक प्रशंसा होने के बावजूद, प्रकाशन को आर्थिक नुकसान होने के बाद उन्हें पत्रिका को बंद करना पड़ा। हरि शंकर परसाई रायपुर और जबलपुर से प्रकाशित एक हिंदी समाचार पत्र देशबंधु में “पूछिये परसाई से” कॉलम में पाठकों के उत्तर देते थे। उन्होंने अपने व्यंग्य, “विकलांग श्रद्धा का दौर” ‘विकलांग श्रीमान का रोल’ के लिए 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।

सीएम नईम द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित 21 चुनिंदा कहानियों का संग्रह 1994 में प्रकाशित हुआ था: इंस्पेक्टर मातादीन ऑन द मून (मानस बुक्स, चेन्नई)। इसे 2003 में कथा प्रेस, नई दिल्ली द्वारा पुनर्मुद्रित किया गया था। 

‘बारात की वापसी’ और ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ जैसी कई कहानियां और निबंध भी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं और एनसीईआरटी की किताबों में उपलब्ध है। उनका रचना संसार हमारे इर्द गिर्द घूमता है।

व्यंग्य

विकलांग श्राद्ध का दौर (विकलांग श्रीमत्ता का रोल)

दो नाक वाले लोग (दो नाक वाले लोग)

आध्यात्मिक पागलों का मिशन, क्रांतिकारी की कथा, पवित्रता का दौरा, पुलिस-मन्त्री का पुतला (पुलिस- बाजार का पूतला), वाह जो आदमी है ना (वह जो मनुष्य है), नया साल, घायल बसंत, संस्कृति, बारात की वापसी (बारात की पुनरावर्तक), ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड (ग्रीट कार्ड और राशन कार्ड), उखड़े खंभे, शर्म की बात पर ताली पीटना ,पिटेन-पिटाने में फार्क, बड़ाचलन (बदचलन), एक आशुद्ध बेवकूफ, भारत को चाही जादूगर और साधु, भगत की गत, मुंडन, इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर, खेती, एक मध्यमवर्गीय कुट्टा (एक मध्यम वर्गीय कुट), सुदामा का चावल, अकाल उत्सव, खतरे ऐसे भी, कंधे श्रवणकुमार के, दास दिन का अनशन (दस दिन का अनशन), अपील का जादू,भेड़ें और भेड़िए, बस की यात्रा इत्यादि।

निबंध

आवारा भेड़ के खतरे (आवारा के खतरे),ऐसा भी सोचा जाता है (ऐस भी अच्छा है), अपनी अपनी बीमारी, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, सदाचार का ताबीज, प्रेमचंद के फटे जूटी, वैष्णव की मछली (वैष्णव की फिसलन), थिथुरता हुआ गणतंत्र, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, तुलसीदास चंदन घिसैन, हम एक उमर से वाक़िफ़ हैं, तब की बात और थी (तब की बात और),भूत के पाँव पीछे, बीमानी की परात (बेईमानी की परत)

लघु कथाएँ

जैसे उनके दिन फिर (लघु कहानी संग्रह)

भोलाराम का जीव (भोलाराम का जीव)

हंसते हैं रोते हैं (लघु कहानी संग्रह)

बच्चों का साहित्य

चुहा और में (चूहा और मैं)

पत्र

मायाराम सुरजन (मायाराम सुरजन)

उपन्यास

ज्वाला और जल (ज्वाला और जल), तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी (नानी नागफनी की कहानी)

संस्मरण

तिरछी रेखाएं, मरना कोई हार नहीं होती (मरना नहीं), सीधे-सादे और जटिल मुक्तिबोध

उपाख्यान

चंदे का डर, अपना-पराया, दानी, रसोई घर और पाइखाना, सुधार, समझौता, यास सर (ईसा सर)

एशलील (अशलील)

परसाई ने सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ की जितनी समझ और तमीज पैदा की उतनी हमारे युग में कोई और लेखक नहीं कर सका है. अपनी हास्य व्यंग्य रचनाओं से जीवन की सच्चाई,राजनैतिक,सामाजिक और धार्मिक पाखंड बेबाक टिप्पणी कर सब कुछ कह देने वाले हरिशंकर परसाई ने 10 अगस्त, 1995 को दुनिया छोड़ दी। परसाई मौन हो गए परंतु उनकी रचनाएं ज्यादा मुखर हो गई। खामोशी और सन्नाटे को  परसाई जी बहुत ताकत और पूरी ऊर्जा के साथ तोड़ते हैं।

कथा साहित्य