Special Article: क्या फिर एक मुल्क हो सकते हैं भारत- पाकिस्तान और बांग्लादेश ?

Special Article: क्या फिर एक मुल्क हो सकते हैं भारत- पाकिस्तान और बांग्लादेश ?

विशेष आलेख, हिमांशु शर्मा। भारत और पाकिस्तान का विभाजन आखिर क्यों हुआ था? एक बड़े रक्तपात की आशंका को रोकना इस विभाजन का सबसे बड़ा कारण बताया जाता है, लेकिन इसके ठीक विपरीत विभाजन ने एक रक्तरंजित इतिहास हमारे साथ जोड़ दिया।

जिस रक्तपात को हम रोकना चाहते थे, विभाजन ही उसका कारण बना। विभाजन के बाद से लेकर आज तक सीमा के नाम पर कितने ही संघर्षों में कितनी जानें गई हैं। एक देश, पहले दो और फिर तीन देश बन गए। देश सीमाओं में बंट गया और पूरा का पूरा भूगोल एक रात में बदल गया, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश फिर से एक मुल्क हो सकते हैं, क्या हम फिर से विभाजन के पहले वाली स्थिति में आ सकते हैं? और अगर ऐसा होता है तो क्या होगा?

हमारे आचार- विचार, रहन- सहन, भाषा- बोली, संस्कृति- संस्कार, रीति- रिवाज सब तो एक से हैं, तो फिर हम एक क्यों नहीं हो सकते। आखिर विभाजन से पहले तो हम एक ही थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख और राष्ट्रवादी नेता मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि विभाजन की पीड़ा को तभी समाप्त किया जा सकता है जब विभाजन को निरस्त किया जाए। अखंड भारत का सपना देखने वालों के लिए श्री भागवत की यह बातें बेहद प्रेरक हो सकती हैं, लेकिन इस पर पाकिस्तान ने नाराज़गी ज़ाहिर की। श्री भागवत ने अपने बयान में कहा था कि अगर आप एक ताकतवर कौम में ढल कर समाज की भलाई के लिए कुछ करना चाहते हैं तो इसके लिए हिंदू समाज को इस काबिल बनना होगा। भारत के विभाजन की पीड़ा को समाप्त करने का समाधान विभाजन को निरस्त करने में ही है। यह 2021 का भारत है, 1947 का नहीं। विभाजन एक बार हो गया दोबारा नहीं होगा। जो विभाजन का सोचते हैं, खुद उनका विभाजन हो जाएगा।

बहरहाल यह एक राष्ट्रवादी नेता के विचार हैं और यह विचार इसलिए अहम हैं, क्योंकि आरएसएस से जुड़ी भाजपा की मजबूत सरकार भारत में इस समय है। हजारों साल पुराना इतिहास एक बात सिखाता है कि इस पृथ्वी पर दो चीजें अपना आकार बदलती रहती हैं। एक किसी नदी का रास्ता और दूसरा किसी देश या साम्राज्य की सीमाएं। रोमन, तुर्क से लेकर चंद्रगुप्त मौर्य व औरंगजेब की सल्तनत तक और अब भी कुछ वर्षों पहले सोवियत रूस के विभाजन तक, इस पृथ्वी पर साम्राज्य का भूगोल लगातार बदलता रहा है।

खुद भारत हजारों वर्ष के दौरान कई बार फैला और सिकुड़ा। 1947 में भारत से अलग होकर जो पाकिस्तान बना वह सन 1971 में कहां गया ? एक नए देश का जन्म हुआ और इसके साथ फिर भूगोल बदला। हम अपने देश की सीमा की हिफाजत के लिए मर मिटेंगे। कौन सा देश? कौन सी सीमा? आज भी वही सब है जो 5000 साल पहले था।

इस वक्त भारत की आबादी एक अरब 30 करोड़ है जिसमें से 20 करोड़ मुस्लिम हैं। यदि अखंड भारत की सोच साकार होती है और विभाजन निरस्त होता है तो देश में हिंदू 100 करोड़ ही रहेंगे, लेकिन सिर्फ एक रात के अंदर मुस्लिमों की आबादी बढ़कर 60 करोड़ हो जाएगी। आज देश में 20 करोड़ मुसलमानों को एक समस्या बताया जा रहा है, तो सोचिए अगर मुस्लिम आबादी 3 गुना बढ़ेगी फिर ?

देश के 100 करोड़ हिंदुओं से यह सवाल है, जिनमें से शायद बहुत से लोग अखंड भारत का सपना देखते हों, की मन में धर्म के नाम पर जो द्वेष की भावना है, उसे मिटा कर क्या हम उन 40 करोड़ मुस्लिमों को भाई की तरह एक मुल्क में स्वीकार कर सकेंगे। क्या सरकार देश में उस तरह का ठोस नागरिकता कानून ला सकेगी, जिसमें सभी धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के अपने पूरे आत्म सम्मान के साथ बिना किसी भय के एक मजबूत राष्ट्र के रूप में रह सकें। क्या देश में एक ऐसी व्यवस्था लागू हो सकेगी, जिसमें सामाजिक रुप से सभी एक समान हों और धर्म जाति से परे उठकर एक दूसरे को गले लगाने की ताकत रखते हों।

यह पृथ्वी मेरे जन्म के पहले भी ऐसी ही थी और आज भी ऐसे ही है और मेरी मृत्यु के बाद भी ऐसी ही रहेगी। जिसने भी भूगोल पढ़ा है, वह मेरी इस बात को जरूर स्वीकार कर पाएगा की नदियों के रास्ते और देश की सीमाओं का आकार बदलना एक स्वाभाविक क्रिया है। नदी अपने तट को काटती हुई एक समय बाद रुख को बदलती जाती है। उसी तरह देश की सीमाएं भी समय के साथ बनी हैं। समय का चक्र देश के स्वरूप को एक समय के बाद बदलता रहा है। हजारों सालों से यही चला आ रहा है। यकीन मानिए यह एक दिन होना है। एक बार फिर सीमाएं बदलेंगी और मुल्क एक होंगे, लेकिन इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए हमें बेहद उदार होना होगा। ऐसी उदारता जो धर्म जाति के बीच भेद न करती हो। मानवता का उदारवादी धर्म यदि भारतीय समाज में जाग जाए तो यह पूरी तरह संभव है।

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