रायपुर। Chhattisgarh Raipur: गणेश कछवाहा, रायगढ़। अवतार सिंह संधू जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे।
अवतार सिंह पाश उन चंद इंकलाबी शायरो में से है, जिन्होंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कम लिखी क्रान्तिकारी शायर गरीब मजदूर किसान के अधिकारों के लिए लेखनी चलाई, इनका मानना था कि सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” अपने हक खून पसीने की एक एक बूंद की कीमत मिलनी चाहिए। भाग्य के भरोसे थक हार कर बैठ जाना ठीक नहीं। अपने सपनों को ज़िंदा रखना और उसे पूरा करने के लिए जीना ही असली जीवन है। इसलिए उन्होंने यह भी लिखा -बिना लड़े कुछ नहीं मिलता उन्होंने लिखा “हम लड़ेगें साथी”एक संयोग है कि अमर शहीद भगत सिंह और अवतार सिंह संधू पाश की शहादत दिवस 23 मार्च ही है।

भगत सिंह के समतावादी विचारों को अपनी कविता में बखूबी दर्ज करते हैं। पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है और उनकी कविताएं व्यवस्था से सीधे टकराती हैं, सवाल करती हैं, लेकिन असल में उनके इस रचनात्मक प्रतिरोध के पीछे देश और दुनिया के प्रति उनकी मोहब्बत थी।लोगों को प्यार करने वाले कवि थे पाश। सत्तर के दशक में काव्य जगत के आकाश पर छाये रहे, एक ऐसा कवि जिसने जनआन्दोलनों को ठीक ठीक समझा फिर कलम चलाई। उनका यह क्रांतिकारी मानवतावाद उनकी शहादत तक सलामत रहा।पाश का जन्म 09 सितंबर 1950 में पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम नामक एक छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में अवतार सिंह संधू के रूप में हुआ था। उनके पिता सोहन सिंह संधू भारतीय सेना में एक सिपाही थे, जिन्होंने शौक के तौर पर कविता भी रची थी। पाश नक्सली आंदोलन के बीच बड़ा हुआ , पंजाब में उत्पादन के साधनों को नियंत्रित करने वाले जमींदारों, उद्योगपतियों, व्यापारियों आदि के खिलाफ एक क्रांतिकारी आंदोलन चलाया गया। यह हरित क्रांति के बीच में था जिसने उच्च उपज वाली फसलों का उपयोग करके भारत की अकाल की समस्या को संबोधित किया था , लेकिन अनजाने में पंजाब में अन्य प्रकार की असमानताओं को भी जन्म दिया था। 1970 में, उन्होंने 18 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी कविताओं की अपनी पहली पुस्तक, लोह-कथा ( आयरन टेल ) प्रकाशित की। उनके उग्रवादी और उत्तेजक स्वर ने प्रतिष्ठान की नाराजगी बढ़ा दी और उनके खिलाफ हत्या का आरोप लगाया गया। आखिरकार बरी होने से पहले उन्होंने लगभग दो साल जेल में बिताए। 1972 में, 22 वर्षीय ने एक बरी होने पर शुरू किया, गया, एक साहित्यिक पत्रिका, सियार ( द प्लो लाइन ) का संपादन किया। वह इस अवधि के दौरान बाईं ओर एक लोकप्रिय राजनीतिक व्यक्ति बन गए और उन्हें 1985 में पंजाबी एकेडमी ऑफ लेटर्स में फेलोशिप से सम्मानित किया गया। उन्होंने यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया। अगले वर्ष अमेरिका में रहते हुए, वह सिख चरमपंथी हिंसा का विरोध करते हुए, 47-विरोधी मोर्चे में शामिल हो गए। उनकी बातों का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।अवतार सिंह पाश उन चंद इंकलाबी शायरो में से है, जिन्होंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कम लिखी क्रान्तिकारी शायरी द्वारा पंजाब में ही नहीं सम्पूर्ण भारत में एक नई अलख जगाई। जो स्थान क्रान्तिकारियों में भगत सिंह का है वही स्थान कलमकारो में पाश का है। इन्होंने गरीब मजदूर किसान के अधिकारो के लिये लेखनी चलाई, इनका मानना था बिना लड़े कुछ नहीं मिलता उन्होंने लिखा “हम लड़िगें साथी” तथा “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” जैसे लोकप्रिय गीत लिखे। आज भी क्रान्ति की धार उनके शब्दों द्वारा तेज की जाती है।।पाश की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से एक…सबसे ख़तरनाक होता है आदमी के सपनों का मर जाना। पाश के ये बोल उनको एक क्रांतिकारी कवि के रूप में स्थापित करते हैं। अपनी उम्मीदों को हमेशा जवां रखने का जज़्बा रखे हुए वह शहीदे आज़म भगत सिंह के क़रीब ठहरते हैं। दोनों के विचारों के मूल में एक समतावादी समाज की स्थापना है। असमानता, ऊंच-नीच, जातीय भेदभाव, गरीबी जैसी चीजें उन्हें अंदर से झंझोड़ती थीं, अंदर का यह रोष रचनात्मक प्रतिरोध के रूप में उभरता था। सबसे ख़तरनाक / पाश मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होतीपुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होतीग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होतीबैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो हैसहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो हैसबसे ख़तरनाक नहीं होताकपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो हैजुगनुओं की लौ में पढ़नामुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना बुरा तो हैसबसे ख़तरनाक नहीं होतासबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जानातड़प का न होनासब कुछ सहन कर जानाघर से निकलना काम परऔर काम से लौटकर घर आनासबसे ख़तरनाक होता हैहमारे सपनों का मर जानासबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती हैआपकी कलाई पर चलती हुई भी जोआपकी नज़र में रुकी होती हैसबसे ख़तरनाक वो आंख होती हैजिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती हैऔर जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती हैसबसे ख़तरनाक वो गीत होता हैजो मरसिए की तरह पढ़ा जाता हैआतंकित लोगों के दरवाज़ों परगुंडों की तरह अकड़ता हैसबसे ख़तरनाक वो चांद होता हैजो हर हत्याकांड के बादवीरान हुए आंगन में चढ़ता हैलेकिन आपकी आंखों मेंमिर्चों की तरह नहीं पड़तासबसे ख़तरनाक वो दिशा होती हैजिसमें आत्मा का सूरज डूब जाएऔर जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ाआपके जिस्म के पूरब में चुभ जाएमेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होतीपुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होतीग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।सबसे ख़तरनाक होता हैहमारे सपनों का मर जाना*******पाश जब क्षुब्द होते हैं, क्रोधित होते हैं तो उससे एक उर्जा निकलती है जिसे वो कलमबद्ध करते हैं और वह कविता काव्य प्रेमियों को न केवल झंझोड़ती है बल्कि पाश से हमेशा-हमेशा के लिये जोड़ती है-मैं पूछता हूं आसमान में उड़ते हुए सूरज सेक्या वक़्त इसी का नाम हैकि घटनाएँ कुचलती चली जाएंमस्त हाथी की तरह एक पूरे मनुष्य की चेतना ?कि हर प्रश्न काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?क्यूं सुना दिया जाता है हर बार पुराना चुटकुला क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा हैजरा सोचो -कि हममे से कितनों का नाता है ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !भगत सिंह के बारे में एक टिप्पणी के अंत में पाश ने लिखा था कि-जिस दिन फांसी दी गईउनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिलीजिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ थापंजाब की जवानी कोउसके आख़िरी दिन सेइस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगेकहते हैं ख़ालिस्तानियों की गोली से शहीद होने से पहले पाश भी जिंदगी और शायरी की जद्दोजहद की किताब का एक पन्ना मोड़ा हुआ छोड़ गए थे। उनकी कविताएं संघर्ष की जिजीविषा पैदा करती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने का साहस प्रदान करती हैं। उनकी कविताओं में उम्मीद है, वैचारिक उर्जा है, आत्मविश्वास है, संदेह भी है लेकिन साहस भी है – क्या-क्या नहीं है मेरे पासशाम की रिमझिम नूर में चमकती ज़िंदगीलेकिन मैं हूंघिरा हुआ अपनों सेक्या झपट लेगा कोई मुझ सेरात में क्या किसी अनजान मेंअंधकार में क़ैद कर देंगेमसल देंगे क्याजीवन से जीवनअपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदाऔर अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगेछिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ामअकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें।पाश मेहनतकश मजदूरों का बहुत सम्मान करते थे। मुनाफे पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था में शोषण और श्रम ही लूट का आधार हैं, जिसका विरोध उनकी लगभग हर कविता में है। वे अपनी कविताई में खास तरह के रोमांटिसिज्म और चापलूसी से अलग कामगारों के पक्ष में तनकर खड़े होते हैं। हम लड़ेंगे साथी / पाशहम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिएहम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिएहम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़ेहथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई परहल की लीकें अब भी बनती हैं, चीख़ती धरती परयह काम हमारा नहीं बनता, सवाल नाचता हैसवाल के कंधों पर चढ़करहम लड़ेंगे साथीक़त्ल हुए जज़्बात की क़सम खाकरबुझी हुई नज़रों की क़सम खाकरहाथों पर पड़े गाठों की क़सम खाकरहम लड़ेंगे साथीहम लड़ेंगे तब तककि बीरू बकरिहा जब तकबकरियों का पेशाब पीता हैखिले हुए सरसों के फूल कोबीजनेवाले जब तक ख़ुद नहीं सूँघतेकि सूजी आँखोंवालीगाँव की अध्यापिका का पति जब तकजंग से लौट नहीं आताजब तक पुलिस के सिपाहीअपने ही भाइयों का गला दबाने के लिए विवश हैंकि बाबू दफ़्तरों केजब तक रक्त से अक्षर लिखते हैं…हम लड़ेंगे जब तकदुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है… जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगीजब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगीलड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगीऔर हम लड़ेंगे साथी…हम लड़ेंगेकि लड़ने के बग़ैर कुछ भी नहीं मिलताहम लड़ेंगेकि अब तक लड़े क्यों नहींहम लड़ेंगेअपनी सज़ा कबूलने के लिएलड़ते हुए मर जानेवालोंकी याद ज़िन्दा रखने के लिएहम लड़ेंगे साथी… *********कविता-संग्रहलौहकथा,उड्ड्दे बाजाँ मगरसाडे समियाँ विचलड़ांगे साथीखिल्लरे होए वर्के ———-पाश के शब्दों में इतनी ताकत इसलिये है कि उनका जीवन भी उनके शब्दों की तरह ही था। अपने लिखे को उन्होंने बखूबी जीवन में उतारा भी। उम्मीद की कलम थामें बेख़ौफ और बेबाक नजरिये वाला यह कवि डर, अन्याय, घुटन, गैरबराबरी के लिये हमेशा एक चुनौती बना रहेगा। पाश अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।