एनटीपीसी ने सिम्हाद्री (विशाखापत्तनम के पास) के एनटीपीसी गेस्ट हाउस में इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके हाइड्रोजन उत्पादन के साथ ही “एकल ईंधन-सेल आधारित माइक्रो-ग्रिड” परियोजना की शुरुआत की है। यह भारत की पहली हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा भंडारण परियोजना है। इसकी बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं में अग्रणी भूमिका होगी और यह देश के विभिन्न ऑफ ग्रिड तथा महत्वपूर्ण स्थानों में माइक्रोग्रिड की स्थापना एवं अध्ययन के लिए उपयोगी साबित होगी।

इस अनूठी परियोजना की रूपरेखा एनटीपीसी द्वारा इन-हाउस डिजाइन और तय की गई है। यह भारत के लिए एक विशिष्ट परियोजना है और देश के दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर इत्यादि, जो अब तक केवल डीजल जनरेटर पर निर्भर हैं, उनको डीकार्बोनाइज करने के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। यह परियोजना माननीय प्रधानमंत्री के वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने और लद्दाख को कार्बन न्यूट्रल क्षेत्र बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

ऐसे तैयार होगी सॉलिड हाइड्रोजन
एनटीपीसी के अनुसार निकटवर्ती फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट से इनपुट पावर लेकर उन्नत 240 किलोवाट (kW) सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके हाइड्रोजन का उत्पादन होगा। धूप के घंटों के दौरान उत्पादित हाइड्रोजन को उच्च दबाव में स्टोर किया जाएगा और 50 किलोवाट ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल का उपयोग करके विद्युतीकृत किया जाएगा। यह सिस्टम शाम 5 बजे से सुबह 7 बजे तक स्टैंडअलोन मोड में काम करेगा।
कहां उपयोग की जा सकती है गैस
यह ग्रीन हाइड्रोजन पूरी तरह से कार्बन फ्री होगी। ग्रीन हाइड्रोजन से रिफाइनिंग सेक्टर, फर्टीलाइजर सेक्टर, एविएशन सेक्टर और यहां तक कि स्टील सेक्टर में भी ऊर्जा की सप्लाई की जा सकेगी। मौजूदा समय में इन सेक्टर्स में तेल या गैस आधारित ऊर्जा लगती है जिसमें पॉल्यूशन काफी ज्यादा होताा है। देश में रिन्यूएबल एनर्जी की कॉस्टिंग काफी कम है। जैसा कि सोलर एनर्जी पर प्रति यूनिट 2 रुपए से कम लागत आती है। इसी तरह से रिन्यूएबल एनर्जी के इस्तेमाल से ग्रीन हाइड्रोजन पैदा करना आसान और सस्ता होगा।
50 साल पहले शुरू हुआ था काम
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का काम देश में 50 साल पहले शुरू हो चुका था। 1970 के दशक में ग्रीन हाइड्रोजन पर अच्छी सफलता मिली थी। भारत में 1970 में फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन बना था जो बाद में एनएफएल के तौर पर परिवर्तित हुआ। एनएफएल के पास उस वक्त एक ग्रीन पॉवर प्लांट था जो भाखड़ा नांगल बांध से जुड़ा था। भाखड़ा के पानी को उपयोग में लेने के लिए एक वाटर इलेक्ट्रोलीसिस प्लांट बनाया गया था। शुरू में इस प्लांट से ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जाता था, लेकिन बाद में नाइट्रोजन बनाया जाने लगा जो कि ग्रीन एनर्जी का ही एक हिस्सा था। यह नाइट्रोजन गैस भी पानी से बनती थी, इसलिए इससे पैदा होने वाली बिजली ग्रीन एनर्जी की श्रेणी में दर्ज थी।
परियोजना का महत्व
यह परियोजना बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं के अग्रदूत के रूप में कार्य करेगी। यह भारत में कई ऑफ-ग्रिड और रणनीतिक स्थानों में कई माइक्रोग्रिड का अध्ययन और तैनाती के लिए भी उपयोगी होगी। इस परियोजना को NTPC द्वारा इन-हाउस डिजाइन किया गया है। यह लद्दाख, जम्मू और कश्मीर जैसे भारत के दूर-दराज के क्षेत्रों में डीकार्बोनाइजिंग के लिए दरवाजे खोलेगी। इस परियोजना को साल 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने और लद्दाख को कार्बन-न्यूट्रल क्षेत्र बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप लागू किया गया है।
NTPC की स्थापित क्षमता
70 बिजली परियोजनाओं में, NTPC की स्थापित क्षमता लगभग 67.907 गीगावॉट है। 18 गीगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। NTPC ने 2032 तक 4.7 गीगावाट की वर्तमान क्षमता से 60 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है।