स्मृति शेष: अपनी हृदय स्पर्शी रचनाओं के जरिए  जनमानस में अमर रहेंगे पं. दानेश्वर शर्मा

स्मृति शेष: अपनी हृदय स्पर्शी रचनाओं के जरिए जनमानस में अमर रहेंगे पं. दानेश्वर शर्मा

जाने-माने कवि- लेखक, स्तंभकार, गीतकार पंडित दानेश्वर शर्मा ने छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को अपनी साहित्यिक कृतियों से संपन्नता प्रदान की। करीब 7 दशक तक साहित्य सृजन में लगातार सक्रिय रहते हुए उन्होंने कई अनूठी रचनाएं समाज को दीं। 3 फरवरी 2022 को 91 वर्ष की आयु में पंडित दानेश्वर शर्मा इस दुनिया को छोड़ गए। दैहिक रूप से वे भले ही अब हम सबके बीच ना हों, लेकिन उनकी रचनाएं अगली कई पीढ़ियों तक पढ़ी जाएंगी और छत्तीसगढ़ के लोगों को उनके साहित्य सृजन पर हमेशा गर्व होगा।

पंडित दानेश्वर शर्मा आरम्भ में वकालत करने के बाद भिलाई इस्पात संयंत्र के सम्पादकीय विकास विभाग में मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए। 1955 से लेखन आरम्भ किया। प्रथम रचना बेटी के बिदा (1966 ई.)। ये लोककला को मूल स्वरुप में संरक्षित करने के हिमायती थे।

गजब लपरहा दिखते समधि चट चट चट चट बोले रे
रेंगथे तो कनिहा मटकाथे, मेहला साहि ड़ोले रे
– गीतकार दानेश्वर शर्मा, स्वर- सन्तोष झांझी

10 मई 1931 को विद्वान पिता पं. गंगा प्रसाद द्विवेदी तथा विदुषी माता श्रीमती इन्दिरा द्विवेदी के घर ग्राम मेडेसरा, जिला दुर्ग में जन्‍मे तथा बी.ए., एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्‍त दानेश्‍वर शर्मा, भिलाई इस्‍पात संयंत्र के पूर्व प्रबंधक, अखिल भारतीय स्‍तर के साहित्‍यकार, लोक साहित्‍य के अधिकारी विद्वान तथा हिन्‍दी एवं छत्‍तीसगढी के यशस्‍वी कवि थे। उनकी प्रकाशित पुस्‍तकों में छत्‍तीसगढ के लोक गीत (विवेचनात्‍मक, सन् 1962), हर मौसम में छन्‍द लिखूंगा (हिन्‍दी गीत संग्रह सन् 1993), लव-कुश (खण्‍ड काव्‍य सन् 2001), लोक-दर्शन (सनातन, इस्‍लाम, जैन, बौद्ध, मसीही, सिख आदि दर्शन व पर्वो पर निबंध संग्रह, सन् 2003) तपत करू भई तपत कुरू (छत्‍तीसगी कविता संग्रह, 2006) तथा गीत-अगीत (हिन्‍दी काव्‍य संग्रह, सन् 2007) है। देश के अनेक काव्‍य संग्रहों के अतिरिक्‍त, रविशंकर विश्‍वविद्यालयों के एम.ए. (हिन्‍दी) के लोक साहित्‍य विषय हेतु पूर्व निर्धारित छत्‍तीसगढी काव्‍य संकलन तथा वर्तमान में निर्धारित छत्‍तीसगढी भाषा और साहित्‍य किताबों में भी पंडित दानेश्वर शर्मा की कविताएं संग्रहित हैं।

स्वर्गीय दानेश्‍वर शर्मा की चर्चा शिकागो विश्‍वविद्यालय द्वारा प्रका‍शित रिवोलुशनिज्‍म इन छत्‍तीसगढी पोएट्री में भी हुई है। पंडित शर्मा विश्‍व प्रसिद्ध संस्‍था फोर्ड फाउन्‍डेशन द्वारा भारत में विकास हेतु सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के साथ 50 वर्षीय साझेदारी पर प्रकाशित 11 पुस्‍तकों के संपादकीय सलाहकार रहे। आप छत्‍तीसगढ के एक मात्र ऐसे कवि थे, जिनके गीतों के ग्रामोफोन रिकाडर्स व कैसेट देश की सर्वाधिक प्रसिद्ध कंपनियों यथा हिज मास्‍टर्स वायस (कलकत्‍ता) म्‍यूजिक इंडिया पोलीडोर (मुंबई), सरगम रिकार्डस (बनारस) तथा वीनस रिकार्डस (मुंबई) ने बनाए हैं। भिलाई इस्‍पात संयंत्र द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित छत्‍तीसगढ लोक कला महोत्‍सव के संस्‍थापक-संयोजक दानेश्‍वर शर्मा ने पंथी नर्तक देवदास, पंडवानी गायिका पदमभूषण तीजन बाई, रितु वर्मा आदि अनेक कलाकारों को अन्‍तर्राष्‍ट्रीय, क्षितिज पर पहुंचाने तथा राष्‍ट्रीय सम्‍मान उपलब्‍ध कराने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है।

पंडित शर्मा की स्मृति में उनका यह प्यारा सा गीत-

उनके लिखे गीतों में मिट्टी की सोंधी खुशबू आती है। गीतों के शब्द दिल को छूते हैं और भावनाओं को झकझोरते हैं। छत्तीसगढ़ में माताओं बहनों द्वारा मनाए जाने वाले तीजा पर्व को लेकर पंडित शर्मा ने दशकों पहले कुछ गीत लिखे थे। यह तीजा गीत आज भी तीज के मौके पर हर साल बजते हैं। इन गीतों को सुनकर कोई भी भावुक हुए बिना नहीं रह सकता। गीत आंखों में आंसू ला देते हैं। गीतकार दानेश्वर शर्मा का यह राखी/ तीजा गीत 40 वर्ष पुराना है। गीत में स्वर गायिका मन्जुला दास गुप्ता ने दिया है।

मुख्यमंत्री ने व्यक्त की संवेदना

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री दानेश्वर शर्मा की पुत्री श्रीमती सीमा शर्मा से दूरभाष पर चर्चा कर अपनी शोक संवेदना व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी भाषा के लिए श्री दानेश्वर शर्मा जी का योगदान सदैव अमिट रहेगा।

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