रायपुर। Jheeram Valley Martyrdom Day : आज 25 मई है। आज का दिन हर साल एक ऐसी त्रासद घटना का जिक्रे लेकर आता है, जिसमें छत्तीसगढ़ ने एक बड़ी खूनी तबाही का मंजर देखा था। यह घटना इतिहास में दर्ज हो चुकी है। भारत के इतिहास की एक ऐसी घटना जो हर भारतीय के अंदर आंतरिक सुरक्षा के प्रति भय का एहसास कराती है। इस घटना में नक्सलियों के हाथों छत्तीसगढ़ की राजनीति ने अपने प्रथम श्रेणी के कई दिग्गज नेताओं को खो दिया था। नरसंहार में कुल 32 लोगों की जान गई थी। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के मदनवाड़ा के बाद यह नक्सलियों द्वारा देश के अंदर अंजाम दिए गए नरसंहार की दूसरी सबसे बड़ी घटना है।
घटना को आज 8 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी एक राज कायम है इस नरसंहार के पीछे सीधे तौर पर नक्सलियों का ही हाथ था लेकिन यह एक बड़ी साजिश भी थी। इस हमले को कांग्रेस ने सुपारी किलिंग करार दिया था। यह साजिश कैसे रची गई, कहां रची गई, मुख्य रूप से कौन लोग इसमें शामिल थे, इस तरह के कई सवाल आज भी इसकी जांच को अधूरा बताते हैं।
क्या हुआ था 25 मई 2013 की शाम
25 मई 2013 की शाम को यह हमला बस्तर जिले के दरभा इलाके के झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुआ था। कड़ी उमस भरी इस शाम को अचानक टीवी पर एक खबर आई। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के झीरम घाटी में करीब सवा घंटे पहले एक माओवादी हमला हुआ था। यानी घटना घटी थी शाम करीब 3:50 बजे और उस दुर्गम इलाके से इसकी खबर राजधानी रायपुर तक पहुंचने में इतना वक्त लगा। प्रारंभिक खबर आने के करीब 15 मिनट बाद अपडेट खबर आई। इस खबर में बताया गया कि माओवादी हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेसी के कद्दावर नेता महेन्द्र कर्मा और नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल सहित कई लोग मारे गए हैं। विद्याचरण शुक्ल की हालत गंभीर है। अनायास इस खबर पर एक बार तो भरोसा करना ही मुश्किल हो रहा था। राजधानी में बैठे पत्रकारों के हाथ भी ठिठक गए थे। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर देश की आंतरिक सुरक्षा पर नक्सली इतनी बड़ी सेंध कैसे लगा सकते हैं।
इसके बाद धीरे-धीरे खबरों का दायरा बढ़ने लगा। रात करीब 10 बजे यह जानकारी आई कि हमले में कुल 32 लोग मारे गए हैं। एक-एक कर घटना में मारे गए लोगों के नाम सामने आने लगे। इनमें वे नाम थे जो उस वक्त छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के पहली कतार के नेता थे। यह बहुत बड़ा काफिला था और इस घटना में जो लोग बच गए थे, उन्होंने उस मंजर को बयां करते हुए बताया कि, अचानक दोनों से ओर से बंदूक से चली गोलियों की आवाज गूंजने लगी। काफिले में सबसे आगे चल रही गाड़ी को नक्सलियों ने पहला निशाना बनाया और फिर लगातार गोलियों की आवाज झीरम घाटी में गूंजने लगी। करीब एक घंटे तक गोलियां बरसती रहीं। मौत का तांडव जारी था। एक के बाद एक काफिले की गाड़ियां इस गोलीबारी की जद में आती रहीं। घाटी के दोनों ओर ऊंची पहाड़ियों में चढ़कर सैकड़ों नक्सली अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। जब गोलीबारी खत्म हुई तो वहां पर राहत बचाव और मीडिया दल पहुंचे जो तस्वीरें वहां से आ रही थीं, उनमें सिर्फ घने जंगलों के बीच खून से लथपथ बिखरी लाशें ही लाशें नजर आ रही थी। इस घटना में कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल गंभीर रूप से घायल हुए थे और घटना के 59 दिनों बाद वह भी जीवन और मृत्यु से संघर्ष करते हुए इस दुनिया से चले गए। यह घटना सदियों तक छत्तीसगढ़ के लोगों को याद रहेगी और अपने नेताओं की शहादत की कीमत याद दिलाएगी।