Indian women freedom fighters: आज हमारा देश दुनिया में एक सक्षम और सशक्त राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। देश का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि नारी शक्ति ने सदियों से राष्ट्र के उत्थान में अपना अनुपम योगदान दिया है।
भारत माता की गोद में कुछ ऐसी वीरांगना बेटियां पैदा हुई जिन्होंने पूरे मानवीय समुदाय के उत्थान के लिए काम किया। उनके इन्हीं कार्यों की वजह से आज हम एक सशक्त और संपन्न राष्ट्र के नागरिक होने का गर्व महसूस करते हैं। भारत को आजादी दिलाने, सशक्त और सक्षम बनाने में इन 12 महिलाओं की बड़ी भूमिका है। क्या इनके योगदान के बारे में आप जानते हैं ?

राजकुमारी गुप्ता
राजकुमारी गुप्ता भारत की स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का सच ‘काकोरी कांड’ के बाद खुला। बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि काकोरी कांड में सेनानियों के लिए हथियार पहुंचाने की ज़िम्मेदारी राजकुमारी गुप्ता ने ली थी।
तारा रानी श्रीवास्तव
तारा रानी श्रीवास्तव महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा थीं। वह और उनके पति फूलेंदू बाबू बिहार के सारण जिले में रहते थे। साल 1942 में वह और उनके पति सिवान पुलिस थाने की ओर एक मार्च का नेतृत्व कर रहे थे, जब उन्हें पुलिस ने गोली मार दी।
भगिनी निवेदिता
भगिनी निवेदिता स्वामी विवेकानंद की शिष्या और भारतीयता की अनन्य उपासक थीं। भारत में आज भी जिन विदेशियों पर गर्व किया जाता है उनमें भगिनी निवेदिता का नाम पहली पंक्ति में आता है, जिन्होंने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रानी गाइदिन्ल्यू
रानी गाइदिन्ल्यू एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और नागा आध्यात्मिक नेता थीं। पूर्वोत्तर भारत में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया था। भारत की स्वतंत्रता के लिए रानी गाइदिनल्यू ने नागालैण्ड में क्रांतिकारी आन्दोलन चलाया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें ‘नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई’ कहा जाता है।
दुर्गाबाई देशमुख
आंध्र प्रदेश से स्वाधीनता समर में सर्वप्रथम कूदने वाली महिला दुर्गाबाई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी के नेतृत्व वाले नमक सत्याग्रह गतिविधियों में भाग लिया था। आंदोलन में महिला सत्याग्रहियों के आयोजन में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1930 से 1933 के बीच उन्हें तीन बार जेल में डाला। स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा में चुनी गईं थीं।
विरांगना ऊदा देवी
विरांगना ऊदा देवी ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध महिला सैनिक दस्ते का नेतृत्व किया था। ऊदा देवी अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य थीं। इस विद्रोह के समय हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाहियों के शरणस्थल सिकन्दर बाग़ पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गई थी और 16 नवंबर 1857 को बाग़ में शरण लिए इन 2000 भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था।
इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी पासी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गई थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।
रानी चेनम्मा
रानी चेनम्मा कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं। सन् 1824 में (सन् 1857 के भारत के स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम से भी 33 वर्ष पूर्व) उन्होने हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स) के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। संघर्ष में वह वीरगति को प्राप्त हुईं। भारत में उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में उनका नाम लिया जाता है।
झलकारी बाई
झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।
तिलेश्वरी बरूआ
तिलेश्वरी बरुआ भारत की सबसे कम उम्र की शहीदों में शामिल थीं। उन्हें मात्र 12 साल की उम्र में वीरगति प्राप्त हुई थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तिलेश्वरी बरुआ को गोली मार दी गई थी, जब उन्होंने और कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने एक पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी।
गुलाब कौर
पंजाब के संगरूर जिले के बख्शीवाला गांव की गुलाब कौर ने फिलीपींस के मनीला में साल 1914 में गदर पार्टी में शामिल होकर देश की आजादी के आंदोलन में अपनी बड़ी जिम्मेदारी का वहन किया था। प्रवासी पंजाबी भारतीयों द्वारा स्थापित इस पार्टी ने भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
गुलाब कौर ने पार्टी प्रिंटिंग प्रेस में एक पत्रकार के रूप में काम किया। गुलाब कौर ने लोगों को स्वतंत्रता साहित्य बांटकर और जहाजों के भारतीय यात्रियों को प्रेरक भाषण देकर गदर पार्टी में शामिल होने और देश की आजादी के आंदोलन में कूद पड़ने का आह्वान किया था। उनके इस कार्य से नाराज होकर ब्रिटिश कोर्ट ने उन्हें लाहौर में राजद्रोहपूर्ण कृत्यों के लिए दो साल की सजा सुनाई थी। केसर सिंह द्वारा पंजाबी में लिखी पुस्तक में गुलाब कौर के बारे में विस्तार से बताया गया है।
लक्ष्मी सहगल
डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं।
आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं, लेकिन उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ और वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रहीं।
वेलु नचियार
वेलु नचियार साल 1780- 1790 के समय में शिवगंगा रियासत की रानी थी। वह भारत में अंग्रेज़ी औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ लड़ने वाली पहली वीरांगना थी। उन्हें तमिलनाडु में “वीरमंगई” नाम से भी जाना जाता हैं।
साल 1780 में मैसूर के सुल्तान, हैदर अली की सहायता से बनाई गई सेना के साथ उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लिया। नचियार ने अंग्रेज़ी “ईस्ट इंडिया कंपनी” के शिकंजे से अपने राज्य को बहुत ही पराक्रम से निकाला था। रानी वेलु नचियार वह पहली महिला क्रन्तिकारी रानी थी जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी शक्तियों से लड़ने के लिए व अपनी पुत्री की याद में एक सशक्त महिला सेना तैयार की थी, जिसका निधन अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान हो गया था। उन्होंने करीब 10 सालों तक अपने राज्य पर शासन किया।