हिंदी दिवस: छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, जो कहलाते हैं हिंदी साहित्य के अनमोल रतन

हिंदी दिवस: छत्तीसगढ़ के साहित्यकार, जो कहलाते हैं हिंदी साहित्य के अनमोल रतन

रायपुर। छत्तीसगढ़, मध्य भारत का हिंदी भाषी राज्य है। वैसे तो यहां छत्तीसगढ़ी भाषा का चलन है, लेकिन क्षेत्रीय भाषा की तुलना में हिंदी की व्यापकता रही है। जिसका एक कारण पूर्ववर्तीय मध्यप्रदेश का हिस्सा रहा है। छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्र में हिंदी विशेष रूप से बोली जाती है, और यहां पर सरकारी कार्य भी हिंदी में किए जाती है।

हमारी मातृभाषा की समृद्धि का पर्व मनाने का दिवस

हमारी राजकीय भाषा “छत्तीसगढ़ी” की आधार भाषा भी “हिंदी” ही है। हिंदी जितनी व्यापक है उतनी ही समृद्ध है। हिंदी ने हमें बोली- भाषा की अनूठी शैली प्रदान की है, जो हमारी विशाल और समृद्ध संस्कृति की व्याख्या करती है। इसने अनगिनत अमूल्य साहित्यों को जन्म दिया है।

हिंदी साहित्य को समृद्ध दिलाने में छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी के कई साहित्यकार हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा को आधार मानकर कई चर्चित साहित्यों की रचना की है। कई कालजयी कहानियों का श्रृजन छत्तीसगढ़ में हुआ है।

विनोद कुमार शुक्ल, पंडित सुंदर लाल शर्मा, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्ति बोध, बलदेव प्रसाद मिश्र, गोपाल मिश्र, पंडित सुंदरलाल शर्मा जैसे महान साहित्यकारों के नाम हैं, जिनकी हिंदी रचनाएं पूरे देश- दुनिया में पढ़ी और सुनी जाती हैं। हिंदी भाषा को मजबूत बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह साहित्यकार हिंदी साहित्य के अनमोल रतन कहे जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में ऐसे समृद्धि पाती रही हिंदी

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं। इनका जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में हुआ। इनका पहला कविता संग्रह 1971 में जय हिंद के नाम से प्रकाशित हुआ। 1979 में ‘नौकर की कमीज़’ नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फिल्मकार मणि कौल ने इसी के नाम से फिल्म भी बनाई, जो की अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित की गई। इस फिल्म में भिलाई के अभिनेता पंकज मिश्रा ने मुख्य किरदार निभाया था। कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए वर्ष 1999 का ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नई तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है।

डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हिंदी के निबंधकार थे, जिन्हें ‘मास्टरजी’ के नाम से जाना जाता है। वे राजनांदगांव की हिंदी त्रिवेणी की तीन धाराओं में से एक हैं। इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।बख्शी जी को सरस्वती पत्रिका का संपादक कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध कहानी “झल मला” कालजयी कहानी है। 1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। वे हिन्दी के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ का नीलकंठ कहा जाते हैं। हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है। इनकी पहली कविता “ह्रदय की प्यास” 1935 में कालेज की पत्रिका में छपी। 1940 में अज्ञेय के प्रथम तार सप्तक का प्रकाशन हुआ। इनकी मुख्य रचनाएं कहानी संग्रह- काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी रहा है। इनका कविता संग्रह- चांद का मुंह टेढ़ा, भूरी भूरी खाक धूल रही है।

डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के लेखन की मुख्य विधा है कविता, कहानी, आलोचना एवं ललित निबंध, उनकी करीब 20 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने पंडित मुकुटधर पाण्डे पर गहरा अध्ययन किया है। प्रकृति उनकी प्रेरणा का स्रोत है। छत्तीसगढ़ का पहला समाचार पत्र छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन इन्होने बिलासपुर के पेंड्रा जिले से किया था। इनकी रचना- मृणालिनी परिणय, समाज सेवक, मैथिलि परिणय, कोशल किशोर, मानस मंथन, जीवां संगीत, साहित्य लहरी आदि रही।

रतनपुर के गोपाल मिश्र हिंदी काव्य की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के वाल्मीकि कहे जाते हैं। इनकी किताब- खूब तमाशा, जैमिनी अश्वमेघ, सुदामा चरित, भक्ति चिंताणि, राम प्रताप।

पं सुन्दर लाल शर्मा को छत्तीसगढ़ का महात्मागांधी कहा जाता है। इनकी रचना दानलीला छत्तीसगढ़ का प्रथम प्रबंध काव्य है।

देश की आधिकारिक भाषा का गौरव”

वर्ष 1949 में इस दिन भारत की संविधान सभा द्वारा हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। हिंदी के महान साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिंह का 50वां जन्मदिन भी था, इसीलिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस के लिए श्रेष्ठ मानकर इसे मनाने का ऐलान किया गया। हिंदी सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाला भाषा है। हिंदी दिवस एक ऐसा दिन है जो हमें देशभक्ति भावना के लिए प्रेरित करता है। हिंदी दिवस राष्ट्रीय स्तर पर भी मनाया जाता है जिसमें देश के राष्ट्रपति उन लोगों को पुरस्कार देते हैं जिन्होंने हिंदी भाषा से संबंधित किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल की है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदी के लिए आधिकारिक भाषा का दर्जा लेने का मुद्दा उठाया था।

हिंदी के सम्मान के लिए चलाया अभियान

हिंदी को विशेष दर्जा दिलवाने में मैथलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविंद दास, काका कालेलकर जी की अहम भूमिका रही है। हिंदी दिवस पर हिंदी के बेहतरीन कवियों, लेखकों और साहित्यकारों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। हिंदी के प्रसिद्ध कवियों में शुमार हरिवंशराय बच्चन, रघुवीर सहाय, भवानी प्रसाद मिश्र, दुष्यंत कुमार जी हैं, जिनकी कविताएं हम सबके दिलो- दिमाग में अमिट छाप छोड़ गई।

इसलिए मनाते हैं हिंदी दिवस

हिंदी दिवस हमारी सांस्कृतिक जड़ों को फिर से देखने और अपनी समृद्धता का जश्न मनाने का दिन है। हिन्दी दिवस हमारी राष्ट्रीय भाषा हिंदी को सम्मान देने का एक शानदार तरीका है। हिंदी दिवस को उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है, जिस दिन हिंदी हमारे देश की आधिकारिक भाषा बन गई। यह हर साल हिंदी के महत्व पर जोर देने और हर पीढ़ी के बीच इसको बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है यह युवाओं को अपनी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहां तक पहुंचे हैं और हम क्या करते हैं अगर हम अपनी जड़ों के साथ मैदान में डटे रहे और समन्वयित रहें तो हम अपनी पकड़ मजबूत बना लेंगे।

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