मुंबई। Higher Education : कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से पिछले 2 वर्षों से शिक्षा क्षेत्र में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कई राज्यों में इस साल कक्षा 10 की परीक्षाएं महामारी के कारण रद्द कर दी गई हैं, कई जगहों पर इंजीनियरिंग प्रवेश नौवीं कक्षा के अंकों के आधार पर हो रहे हैं। पारंपरिक चार वर्षीय इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में कक्षा 12 के ग्रेड और जेईई और राज्य सीईटी जैसे कठिन परीक्षणों के आधार पर प्रवेश अनिवार्य है।
परीक्षाओं की अव्यवस्था को दूर करके भारत के सबसे लोकप्रिय पेशेवर इंजीनियरिंग शिक्षा के कार्यक्रम की संरचना में बदलाव करते हुए निजी संस्थान बीटेक को छह साल का कोर्स बना रहे हैं। कक्षा 10 के बाद छात्रों का नामांकन कर रहे हैं और आजीवन पैकेज की पेशकश कर रहे हैं।
इंजीनियरिंग शिक्षा कार्यक्रम का यह नया संस्करण संरचनात्मक रूप से 3+3 मॉडल या 2+4 प्रारूप है। एमआईटी-वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी संस्थान में से हैं जिन्होंने इस तरह के प्रोफेशनल कोर्स को इस साल लांच किया। दरअसल यह संस्थान दसवीं के बाद छात्र का प्रवेश इस आधार पर सुनिश्चित करते हैं कि यह “एक इंजीनियरिंग सीट का आश्वासन” होगा। संस्थान के रजिस्ट्रार प्रशांत दवे ने बताया, “एक बार जब कोई छात्र कक्षा 10 के बाद भर्ती हो जाता है, तो वे कक्षा 12 की परीक्षा, सीईटी स्कोर और फिर एक कॉलेज खोजने की अनिश्चितता से बच जाता है।” यह प्रोग्राम बीटेक डिग्री प्राप्त करने के लिए वैकल्पिक रास्ते का काम करता है। इंजीनियरिंग के लिए कई परीक्षाएं देने वाले छात्रों में काफी तनाव की स्थिति रहती है। इस तरह के पाठ्यक्रम से वे तनाव की स्थिति से बच कर अपनी इंजीनियरिंग सीट सुनिश्चित कर पाते हैं।
गुजरात के गणपत विश्वविद्यालय के अधिकारी अमित पटेल ने कहा, “तीन साल के बाद छात्र को डिप्लोमा मिलता है और छह साल के अंत में उसे बीटेक की डिग्री प्रदान की जाती है। छात्र छह साल तकनीकी शिक्षा में बिताते हैं जो उन्हें बेहतर इंजीनियर बनाता है, लेकिन पॉलिटेक्निक करने वाला क्या हर एक छात्र बैठक में प्रवेश ले पाता है, नहीं ना? हमने एक अलग प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की है जो छह साल का कार्यक्रम प्रदान करता है। डिप्लोमा और डिग्री दोनों विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
एआईसीटीई के पूर्व अध्यक्ष एस एस मंथा का इस विषय में कहना है कि, विश्वविद्यालय डिप्लोमा, डिग्री और प्रमाणपत्र दे सकते हैं। यही वह प्रावधान है जिसका यह विश्वविद्यालय अक्सर गलत फायदा भी उठाते हैं। डिग्री, सीट या नौकरी के आश्वासन की बजाय़ शिक्षा की गुणवत्ता का खुद आकलन करते हुए और संस्थान के शैक्षणिक स्तर का परीक्षण कर छात्रों को अपने भविष्य का सही फैसला लेना चाहिए। शिक्षा जगत में आ रहे बदलाव कई प्रकार से अनुकूल भी है। यह बदलाव गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए स्वीकार किए जाने चाहिए।