Happy Navroz 2022: भारत में पारसी समुदाय और नए साल का उत्सव नवरोज, जानिए क्या है परंपरा

Happy Navroz 2022: भारत में पारसी समुदाय और नए साल का उत्सव नवरोज, जानिए क्या है परंपरा

Happy Navroz 2022: नौरोज़ पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है। नौरोज़ नए वर्ष का त्योहार है, जो सामान्यत: ज़रथुस्त्रीय मत और पारसी संप्रदाय से संबंधित है।

आज के ईरान को एक जमाने में पारस या फारस के नाम से जाना जाता था। यह मूलत: प्रकृति प्रेम का उत्सव है। प्रकृति के उदय, प्रफुल्लता, ताज़गी, हरियाली और उत्साह का मनोरम दृश्य पेश करता है। पारसी समुदाय का यह उत्सव भारत के परिपेक्ष में इसलिए भी भी खास है क्योंकि आज दुनिया में पारसियों की सबसे अधिक आबादी भारत में ही रहती है।

होली और नवरोज, एक सी परंपरा
पारसियों की अपनी एक अलग संस्कृति है। नवरोज में मुख्य रूप से अग्नि की पूजा की जाती है और यह कुछ कुछ भारतीय पर्व होली की तरह ही लगता है। यह उत्सव, मनुष्य के पुनर्जीवन और उसके हृदय में परिवर्तन के साथ प्रकृति की स्वच्छ आत्मा में चेतना व निखार पर बल देता है। यह पर वह पूरी तरह से प्रकृति के प्रेम और सौंदर्य को समर्पित है। मौसम में आए बदलाव के साथ। प्रकृति रंग बिरंगे फूलों से सज जाती है और एक नए साल का उदय होता है जो नए विचार, नई सृजनशीलता का प्रतीक माना जाता है।

नवरोज पर पांच प्रार्थनाएं और अनुष्ठान

पारसियों में नए नौरज़ एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें पांच निर्धारित पूजा-कार्यों की आवश्यकता होती है-

1. अफ्रिंगन, यानी प्यार और प्रशंसा की प्रार्थनाएं।

2. बाज, यानी यज़ताओं के सम्मान में प्रार्थनाएं या फ़्रावाशी के सम्मानार्थ अर्चनाएं।

3. यस्न, एक अनुष्ठान, जिसमें पवित्र पेय हाओमा चढ़ाना और विधिपूर्वक पान करना।

4. फ़्रावर्तिगिन या फ़रोक्षी, यानी स्वर्गवासियों की स्मृति में प्रार्थना।

5. सैटम यानी अंत्येष्टि भोज के समय उच्चारित प्रार्थनाएं।

दिन भर पारसी लोग एक-दूसरे का अभिवादन हमाज़ोर रीति से करते हैं, जिसमें एक व्यक्ति का दाहिना हाथ दूसरे की हथेलियों के बीच रखा जाता है। बाद में अभिनंदन और शुभकामनाओं के उद्गार व्यक्त किए जाते हैं।

भारत में नवरोज उत्सव
प्राचीन परंपराओं व संस्कारों के साथ नौरोज़ का उत्सव न केवल ईरान ही में ही नहीं बल्कि कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है, जिनमें भारत भी प्रमुख रूप से शामिल है। भारत में बड़ी संख्या में पारसी समुदाय के लोग निवास करते हैं, जिनके पूर्वज कभी ईरान से भारत आए थे। भारत में नवरोज को पारंपरिक उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत बलबनी वंश के संस्थापक शासक बलबन के कार्यकाल के दौरान हुई थी। इसके अलावा अकबर ने भी इसे राजकीय पर्व माना था और अकबर के शासनकाल के दौरान यह पर्व बहुत ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता था। पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में इसे 3,000 से भी अधिक वर्षों से मनाया जाता रहा है। यह ईरानी कैलेंडर के पहले महीने (फारवर्दिन) का पहला दिन है। ईरानी कैलेंडर मूल रूप से सौर हिजरी कैलेंडर पर आधारित है।

विश्व में पारसियों की सबसे बड़ी आबादी भारत में
इस्लाम के आने के पूर्व प्राचीन ईरान में ज़रथुष्ट्र धर्म का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहां के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को प्रताड़ित करके जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत आ गए और यहां गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गए। वर्तमान समय में भारत में उनकी संख्या लगभग एक लाख है, जिनमें से 70 फीसद लोग मुम्बई में रहते हैं। ईरान और दूसरे देशों में जब पारसी लोग प्रताड़ित किए जा रहे थे, भारत में सबके लिए सद्भाव का माहौल था। यही कारण है कि आज विश्व में पारसियों की सबसे अधिक संख्या भारत में रहती है।

(प्रस्तुतीकरण– हिमांशु शर्मा)

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