Mythological story from Skand Puran: स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। चुंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं।
फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है।

भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।
बेल वृक्ष का महत्व –
- बेल वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते।
- अगर किसी की शवयात्रा बेल वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है।
- वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बेल वृक्ष में होती है।
- 4, 5, 6 या 7 पत्तों वाले बेल पत्र शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है।
- बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
- सुबह- शाम बेल वृक्ष के दर्शन से मन में शुद्धता आती है।
- बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं।
- बेल वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने समृद्धि प्राप्त होती है।
- बेलपत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे।
- बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्द्धन करने से महादेव से आत्म बल मिलता है।