रायपुर। Baster Police heart touching moment: नक्सलवाद के कुचक्र में फंसा बस्तर अब धीरे-धीरे इससे मुक्त हो रहा है। पुलिस और सुरक्षा बलों की प्रभावी कार्रवाई और लोगों की सोच में आ रहे बदलाव की वजह से बस्तर का बड़ा हिस्सा अब नक्सल मुक्त हो चुका है।
एक दौर था जब यहां के ज्यादातर इलाकों में नक्सलियों का दबदबा था। नक्सलियों के भय से स्थानीय आदिवासी ग्रामीण पुलिस और सुरक्षाबलों से घबराते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान यहां पुलिस और सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद का खात्मा करने के साथ-साथ आदिवासी ग्रामीणों का भरोसा भी जीता और आज भी उनके सुख-दुख के सबसे बड़े हमदर्द और मददगार बने हैं।

सोशल मीडिया पर बस्तर से बेहद खूबसूरत नजारा सामने आया जिसमे सुरक्षा, सहयोग, भरोसा देखने को मिल रहा है।
दंतेवाडा जिले मे डीआरजी के जवान गश्त से लौटते वक्त जंगल मे महुआ बिन रही महिला व बच्ची का सहयोग करते हुए खुद भी महुआ बिनने लगे और महुआ को कांवड मे लाद कर महिला के घर भी पहुंचाया।

इस तरह का नजारा इन दिनों बस्तर में और भी कई इलाकों में देखने को मिल रहा है। इन दिनों महुआ का सीजन चल रहा है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में महुआ को वाइट गोल्ड के नाम से भी जानते हैं। महुआ का उपयोग देसी शराब बनाने में मुख्य रूप से होता है। आदिवासी संस्कृति में महुआ की शराब का बहुत बड़ा महत्व है। इसके अलावा माहुवे से कई प्रकार की खाद्य सामग्री भी आदिवासी बनाते हैं। महुआ के सीजन में गांव के लोगों को और दूसरे किसी काम की फुर्सत नहीं रहती। वह पूरा समय लगाकर महुआ बीनने में जुटे रहते हैं, ताकि इसे बेचकर कुछ पैसे कमा सकें।
ग्रामीण इलाकों में आय के साधन बहुत ही सीमित होते हैं ऐसे में साल का बहुत कम समय ऐसा आता है जब मुख्य रूप से महिलाएं और बालिकाएं महुआ जमा कर उसे बेचकर थोड़े पैसे जुटा लेती हैं। इन दिनों जब जवान नक्सल इलाकों में तैनाती के दौरान गस्त पर निकल रहे हैं तो उन्हें इन महिलाओं और ग्रामीणों की सुरक्षा की जिम्मेदारी के साथ साथ इनकी मदद का भी मौका मिल रहा है। जवानों के इस सराहनीय कदम की जमकर चर्चा भी हो रही है।
