Basant panchmi 2022: बसंत पंचमी पर कुछ जनवादी रचनाएं

Basant panchmi 2022: बसंत पंचमी पर कुछ जनवादी रचनाएं

Basant panchmi 2022: गणेश कछवाहा: बसंत पंचमी के उपलक्ष में आज प्रस्तुत है कुछ जनवादी कविताएं-


भव्य
इमारत के
वातानुकूल कमरे के
शो केस में
कागज की बनी
गुलाब की
पंखुड़ियों को देखकर
तुम
यह मत समझो
कि
बसंत आ गया है।।।

कूकती कोयल,
इतराते आम्रबौर,
सुगंध बिखेरते पुष्प,
सम्मोहित करती
पुरवैया,
महज
प्रकृति का श्रृंगार
ही नहीं है
और न ही
पंचसितारा
संस्कृति में डूबकर
कमर मटकाने
जाम झलकाने का
घिनौना
और
वैश्याना बिम्ब है,
बल्कि वह तो
सुकोमल भावनाओं और
संवेदनाओं को अंकुरित करती
जीवन के
असीम आनंदित झणों के
अनुपम श्रृंगार का
प्रतिबिंब है।।

टेसू का
अंगारों सा दहकना
केवल
प्रकृति का सौन्दर्य ही नहीं
बल्कि
दैत्याना और बहिशाना
हरकतों के खिलाफ
एक जंग का
ऐलान भी है
और
जगमगाती
नई सुबह की
लालिमा की दस्तक है।।

जब
उन्मुक्त हंसी,
निश्छल मुस्कान,
पुरवैया मनभावन,
काव्य,कला,संगीत की अनुगूँज हो,
वनपांखियो का कोलाहल हो,
सृजन के नए आयाम हो,
नवयौवना की चाल
मतवाली हो,
खेतों में हरियाली हो और
पनघट इठलाती हो
तब समझो
बसंत आ गया।।

बसंत
महलों और झोपड़ियों में
कोई भेद नहीं रखता।
बसंत
उस आंगन में
हंसता है,खेलता है,गुनगुनाता है
जहां इंसान रहते हैं।
उसे
शो केस या
पंचसितारा संस्कृति की
चार दीवारी में
कैद नहीं किया जा सकता।।

बसंत
एक जीवन है,आंदोलन है,परिवर्तन है
वास्तव में
बसंत एक क्रांति है
जी हाँ एक क्रांति है।।

गणेश कछवाहा/ रायगढ़ छत्तीसगढ़
gp.kachhwaha@gmail.com
94255 72284

05 फरवरी बसंत पंचमी पर
बसंत पर एक जनवादी रचना
गणेश कछवाहा की कलम से —


भव्य
इमारत के
वातानुकूल कमरे के
शो केस में
कागज की बनी
गुलाब की
पंखुड़ियों को देखकर
तुम
यह मत समझो
कि
बसंत आ गया है।।।

कूकती कोयल,
इतराते आम्रबौर,
सुगंध बिखेरते पुष्प,
सम्मोहित करती
पुरवैया,
महज
प्रकृति का श्रृंगार
ही नहीं है
और न ही
पंचसितारा
संस्कृति में डूबकर
कमर मटकाने
जाम झलकाने का
घिनौना
और
वैश्याना बिम्ब है,
बल्कि वह तो
सुकोमल भावनाओं और
संवेदनाओं को अंकुरित करती
जीवन के
असीम आनंदित झणों के
अनुपम श्रृंगार का
प्रतिबिंब है।।

टेसू का
अंगारों सा दहकना
केवल
प्रकृति का सौन्दर्य ही नहीं
बल्कि
दैत्याना और बहिशाना
हरकतों के खिलाफ
एक जंग का
ऐलान भी है
और
जगमगाती
नई सुबह की
लालिमा की दस्तक है।।

जब
उन्मुक्त हंसी,
निश्छल मुस्कान,
पुरवैया मनभावन,
काव्य,कला,संगीत की अनुगूँज हो,
वनपांखियो का कोलाहल हो,
सृजन के नए आयाम हो,
नवयौवना की चाल
मतवाली हो,
खेतों में हरियाली हो और
पनघट इठलाती हो
तब समझो
बसंत आ गया।।

बसंत
महलों और झोपड़ियों में
कोई भेद नहीं रखता।
बसंत
उस आंगन में
हंसता है,खेलता है,गुनगुनाता है
जहां इंसान रहते हैं।
उसे
शो केस या
पंचसितारा संस्कृति की
चार दीवारी में
कैद नहीं किया जा सकता।।

बसंत
एक जीवन है,आंदोलन है,परिवर्तन है
वास्तव में
बसंत एक क्रांति है
जी हाँ एक क्रांति है।।

गणेश कछवाहा/ रायगढ़ छत्तीसगढ़
gp.kachhwaha@gmail.com
94255 72284


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