रायगढ़, (गणेश कछवाहा)। साधु, संतों, ऋषि मुनियों की तपस्या, साधना, श्रम व आश्रय स्थली को आश्रम कहा जाता है। यहां की हर वस्तु सीखने सिखाने के योग्य होती है। पेड़ पौधे, कण कण तपस्या योग व श्रम से पूज्यनीय हो जाते हैं। यहीं से वेद, पुराण, उपनिषद्, शास्त्र आदि जन्म लिए। समाज और जीवन जीने की आदर्श शैली, मानवता का मंत्र यहीं से मानव ने सीखा।
अघोरेश्वर महाप्रभु अवधूत भगवान राम जी के अनुशासित प्रियशिष्य, औघड़ संतशिरोमणी बाबा प्रियदर्शी राम जी के श्रीचरण कमल 31 जुलाई 1993 को छत्तीसगढ़ के सुरम्य प्रकृति से आच्छादित वनांचल बनोरा रायगढ़ छत्तीसगढ़ में प्रतिस्थापित हुए। अपने गुरु के आदर्शों को संजोए बाबा जी एक छोटी सी कुटिया बनाकर “अघोरान्ना परो मंत्रः,नास्ति तत्वम गुरो परम” में लीन हो गए।

अपने गुरु परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम के 19 सूत्रीय कार्यक्रमों में से प्रमुख शिक्षा, स्वास्थ्य, कुरीतियों को दूर करना और ग्रामीण जनों के उत्थान के कार्यक्रमों को ग्रामीण जन के सहयोग से शनैः शनैः गति प्रदान करते गए। वर्तमान में आज बनोरा “मानवता व आदर्श चरित्र के निर्माण का आध्यात्मिक शक्ति पीठ ” बन चुका है। बनोरा अर्थात बनो राम का पर्याय हो गया है।
अघोर परंपरा में “गुरु का स्थान सर्वोच्च होता है” अघोर साधना बहुत सुगम और सहज है। पूज्य गुरुदेव बाबा जी ने अपने गुरु परमपूज्य अघोरेश्वर राम के आदर्शों व आचरण को अनुशासन बद्ध हो आत्मसात करते हुए उनके बताए पगडंडी को अपने जीवन का परम लक्ष्य बनाए।अघोरेश्वर महाप्रभु सदैव सिखाया करते थे की “मानव सेवा और समाज व राष्ट्र की सेवा गढ़े हुए देवता की पूजा से महान है।” वे स्वयं कुष्ठ रोगियों की सेवा किया करते थे। वह मानव और समाज सेवा का सर्वश्रेष्ठ कार्य ग्रीनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज़ है।
गुरुदेव की अघोर साधना से बनोरा के बाद क्रमशः डभरा, शिवरीनारायण, रेणुकोट, अंबिकापुर, चिरमिरी (सरगुजा), जिगना आदि स्थानों पर अघोर साधना स्थली बनाई और अनुयायियों ने अपने अपने घर और आसपास के क्षेत्रों में अघोर परंपरा का पवित्र वातावरण बनाया है। गुरुदेव के हर साधना स्थली (आश्रम) से मानव सेवा,समाजसेवा के अद्वितीय कार्य किए जा रहे हैं। इसवर्ष परमार्थ सेवा आश्रम इलाहाबाद उत्तर प्रदेश द्वारा गुरुदेव “बाबा प्रियदर्शी राम मानव कायाकल्प सेवा” का अदभुत कार्य किया गया।जिसमे पूरे अनुशासन बद्ध टीम बनाकर डॉक्टर इत्यादि साथ में रहकर मैले कुचैले कपड़े ,बाल दाढ़ी बड़े हुए लोगों तथा अस्वस्थ रोगियों की पहचान कर उन्हें नहला धुला कर, बाल दाढ़ी बनाकर साफ सूथरे कपड़े पहना कर उन्हे जल पान भोजन इत्यादि प्रदान कर उनका कया कल्प किया जा रहा है।जो अस्वस्थ या रोगी हैं उनका स्वास्थ्य चेकअप कर उनका इलाज किया जा रहा है।
अघोर कोई पंथ नहीं पथ है। बहुत ही सहज और सरल है। वेदों में लिखा है “अघोर से बड़ा कोई मंत्र नही और गुरु से बढ़ा कोई तत्व नहीं।” अघोरन्ना परो मंत्रः, नास्ति तत्वम् गुरो परम।।
31 जुलाई बनोरा आश्रम के स्थापना दिवस पर राष्ट्र कल्याण हेतु गुरु के श्री चरणों में सादर निवेदित है।